कोरबा, 10 सितम्बर 2025। BALCO CG Cancer Conclave will be organized मध्य भारत में कैंसर उपचार के क्षेत्र में अग्रणी बालको मेडिकल सेंटर (बीएमसी) 19 से 21 सितम्बर 2025 तक नया रायपुर स्थित मयफेयर लेक रिज़ॉर्ट में अपने वार्षिक ‘छत्तीसगढ़ कैंसर कॉन्क्लेव’ के तीसरे संस्करण का आयोजन करेगा। इस कॉन्क्लेव के साथ ही ‘चूज़िंग वाइज़ली इंडिया’ मीटिंग के छठे वर्ष का भी आयोजन होगा, जिसका आयोजन ई-कैंसर, टाटा मेमोरियल सेंटर (मुंबई) और नेशनल कैंसर ग्रिड के सहयोग से किया जाएगा।
BALCO CG Cancer Conclave will be organized
BALCO CG Cancer Conclave will be organized
इस साल का कैंसर कॉन्क्लेव ’ड्राइविंग कॉमन-सेंस ऑन्कोलॉजी–गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, जेनिटोयूरिनरी और लंग कैंसर का मल्टी-डिसिप्लिनरी मैनेजमेंट’ विषय पर आधारित है। इसका उद्देश्य बेहतर इलाज परिणामों के लिए बहु-विशेषज्ञ सहयोग की अहमियत को बढ़ावा देना है। तीन दिन तक चलने वाले इस कॉन्फ्रेंस में 20 से ज़्यादा पैनल डिस्कशन होंगी, जिनमें पूरे भारत से 200 से अधिक कैंसर विशेषज्ञ और अमेरिका, यूनाईटेड किंगडम, स्विट्ज़रलैंड, न्यूज़ीलैंड, सिंगापुर, लेबनान और ऑस्ट्रेलिया से आए 10 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल होंगे।
सभी मिलकर अपने अनुभव साझा करेंगे, नवीनतम तकनीक, सर्वोत्तम प्रक्रियाओं पर चर्चा करेंगे और मिलकर काम करने के नए रास्ते तलाश करेंगे ताकि भारत में कैंसर रोगियों को और बेहतर इलाज और अनुभव मिल सके।
BALCO CG Cancer Conclave will be organized
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वेदांता मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन (बालको मेडिकल सेंटर) की चिकित्सा निदेशक डॉ. भावना सिरोही ने कहा कि हर साल इस कॉन्क्लेव में बढ़ती भागीदारी और उत्साह हमारे लिए अहम बात है। वार्षिक कॉन्क्लेव अब मध्य भारत के प्रमुख शैक्षणिक आयोजनों में स्थापित हो चुका है। प्रत्येक सत्र को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है जो चिकित्सकों को वास्तविक नैदानिक चुनौतियों का समाधान प्रदान करे, तथा साथ ही यह भी दर्शाए कि अंतरराष्ट्रीय अनुभवों और सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को अपनाकर गुणवत्तापूर्ण कैंसर उपचार को अधिक सुलभ और किफायती बनाया जा सकता है।
यह कॉन्क्लेव युवा कैंसर विशेषज्ञों के लिए भी सीखने और विचार साझा करने का बड़ा मंच है। हर साल देशभर से 50 छात्रों को यात्रा अनुदान दिया जाता है, ताकि वे भी इन चर्चाओं का हिस्सा बनकर सही और रोगी-केंद्रित इलाज की दिशा में आगे बढ़ सकें।
BALCO CG Cancer Conclave will be organized
इस कॉन्क्लेव में क्षेत्र के लिए पहली बार कई विशेष कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा, जिनमें शामिल हैं, कार्ट-टी सेल अफेरेसिस, सिर और गर्दन के कैंसर की लाइव सर्जरी डेमोंस्ट्रेशन, मिनी-अकॉर्ड रिसर्च वर्कशॉप, जीवन की अंतिम अवस्था में मरीज और परिजनों से संवाद करने का प्रशिक्षण, रोग-पूर्वानुमान पर चर्चा और स्टेरियोटैक्टिक बॉडी रेडियोथेरेपी (एसबीआरटी) पर हैंड्स-ऑन कॉन्टूरिंग वर्कशॉप। इसके साथ ही ‘वीमेन फॉर ऑन्कोलॉजी’ नेटवर्क मीटिंग और कैंसर रोकथाम कार्यशाला भी होगी, जिसका उद्देश्य सामुदायिक स्तर पर कैंसर देखभाल को मज़बूत करना है।
पिछले साल इस कॉन्क्लेव में 1,000 से ज़्यादा प्रतिनिधि शामिल हुए थे, जिनमें डॉक्टर, छात्र और स्वास्थ्यकर्मी मौजूद थे। इस साल और भी बड़ी संख्या में भागीदारी की उम्मीद है। बालको मेडिकल सेंटर की इस मुहिम में अनिल अग्रवाल फाउंडेशन, अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी, नाग फाउंडेशन, छत्तीसगढ़ हेमेटोलॉजी एसोसिएशन और छत्तीसगढ़ ऑन्कोलॉजी एसोसिएशन के सहयोग से हम मध्य भारत में गुणवत्तापूर्ण और सुलभ कैंसर देखभाल को बढ़ावा देने की दिशा में अग्रसर हैं जहाँ दुनिया भर के विशेषज्ञ सम्मलित होंगे। कॉन्क्लेव का रजिस्ट्रेशन अब शुरू हो चुका है। इच्छुक प्रतिभागी बालको मेडिकल सेंटर की आधिकारिक वेबसाइट www.balcomedicalcentre.com पर जाकर पं जीकरण कर सकते हैं।
कोरबा (संतोष कुमार सारथी) Two people died in firing in Korba कोरबा में दिन दहाड़े डबल मर्डर से जिले में दहशत का माहौल है, एक तरफ जहां कोरबा में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय समेत अन्य तमाम मंत्री शहरी क्षेत्र में पहुंच रहे थे दूसरी ओर जिले के हरदीबाजार क्षेत्र में हुए डबल मर्डर से सनसनी फैल गई है।
Two people died in firing in Korba
प्रारंभिक जानकारी अनुसार दो लोगों की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई ही है, आरोपी द्वारा शासकीय बंदूक से गोलियां दागी गई है, जिसमें दो लोगों की मौके पर ही मृत्यु हो गई है, बीच सड़क में दिनदहाड़े हत्या से जिले में खलबली मच गई है…
बता दे कि अभी मुख्यमंत्री, गृहमंत्री समेत अन्य मंत्रियों की मौजूदगी कोरबा में है जहां वे कलेक्ट्रेट में बैठक ले रहे है..बहरहाल विस्तृत जानकारी जुटाई जा रही है।
Mohan Bhagwat’s statement on 75 years जिन्हें सितम्बर महीने में एक ही सप्ताह के भीतर दो-दो विदाई समारोह की फुलझड़ियों और उनकी जगह आने वालों के स्वागत में आतिशबाजी की गलतफहमियाँ थी, उनकी सारी उम्मीदों पर घड़ा भर ठण्डा पानी उड़ेलते हुए 75 वर्ष में रिटायरमेंट की योजना को सिरा दिया गया है। बात वहीँ से ख़त्म हुई, जहां से शुरू हुई थी।
ज्यादा पुरानी बात नहीं है – अभी 10 जुलाई को ही सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में 75 वर्ष में राजनीति से रिटायर होने और पद छोड़ने की बात बहुत जोर देकर कही थी। नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में उन्होंने कहा कि “नेता के लिए 75 साल होने का मतलब है कि उसको राजनीति छोड़ देना चाहिए और दूसरों के लिए रास्ता बनाना चाहिए।” यह यूं ही मुंह से निकल गयी मन की बात या जुबान का फिसलना नहीं था।
Mohan Bhagwat’s statement on 75 years
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उन्होंने इसे और स्पष्ट करते हुए, जिनकी पुस्तक का वे विमोचन कर रहे थे, उन संघ विचारक मोरोपंत पिंगले का कहा भी याद दिलाया। बात को आगे बढाते हुए उन्होंने आगे कहा कि “इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले पिंगले ने एक बार कहा था कि अगर 75 साल की उम्र के बाद आपको शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया जाता है, तो इसका मतलब है कि अब आपको रुक जाना चाहिए, आप बूढ़े हो गए हैं,
एक तरफ हट जाइए और दूसरों को आने दीजिए।” यह एक ऐसा स्पष्ट वक्तव्य है, जिसके बारे में कोई भी गलत उधृत, अलग व्याख्या करने, तोड़-मरोड़ करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
Mohan Bhagwat’s statement on 75 years
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लोगों ने इसे उतना ही पढ़ा और समझा, जितना कहा और समझाया गया था। कयास लगने शुरू हो गए। 11 सितम्बर को भागवत जी 75 के होने वाले थे, जन्म दिनांकों के मामले में स्वघोषित द्विज नरेन्द्र मोदी जन्म की बाद वाली तारीख के हिसाब से 17 सितम्बर को 75 पूरी करने जा रहे थे, सो हलचल होनी ही थी। कुछ नाम तक उछाले जाने लगे – सुनते हैं कि नागपुर के अन्तःपुर की रग-रग से वाकिफ गड़करी तक मुगालते में आ गए और नए कुरते पाजामों के नाप देने का मन बनाने लगे। मगर 10 जुलाई को जिन्होंने भय दिया था, 28 अगस्त को उन्हीं भागवत जी ने अभयदान दे दिया।
Mohan Bhagwat’s statement on 75 years
अपने कहे से वे सफा मुकर गए और दावा किया कि उन्होंने कही नहीं कहा कि उन्हें या किसी और को 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट ले लेना चाहिए। अब जिन्हें 75 होने के चक्कर में बड़ा बताकर खजूर का पेड़ करार देकर शाल पहनाया जा चुका है, उन अडवाणी और पंडित जी मुरली मनोहर जोशी पर क्या गुजरी होगी, ये तो वे ही जाने, लेकिन एक ही व्यक्ति के मुखारविन्द से तड़ातड़ निकले एकदम विरोधाभासी बयानों ने बाकी लोगों को जरूर विस्मय और कौतुक में डाल दिया।
कहे से मुकरने के लिए उन्होंने “100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज” के नाम से दिल्ली में हुए चुनिन्दा लोगों के साथ तीन दिवसीय ‘संवाद’ का मंच चुना। यह एक तरह से ठीक ही जगह थी। इससे लोग इन सौ वर्षों में संघ की कथनी और करनी के फर्क के इतिहास को वर्तमान में देखने का सुख पा गए और नए क्षितिजों की झलक भी देख ली।
Mohan Bhagwat’s statement on 75 years
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इस संवाद में ऐसी अनेक बातों के क्षितिज ही क्षितिज थे। उन पर आने से पहले इस रोचक बयान वापसी और बड़े वालों के सबसे बड़े द्वारा बड़ा होने से ठोक कर किये इंकार के पीछे की कुछ छोटी-बड़ी बातों पर नजर डालना मजेदार होगा। इन तीन दिनों के प्रबोधन में दिए उदबोधनों में संघ प्रमुख ने भारत के हिन्दू राष्ट्र बन जाने का दावा किया है, पिछले तीनेक साल से उनके संघ ने हिन्दू की जगह सनातन को वापरना शुरू कर दिया है। अब जिस अंदाज में वे हिन्दू कह रहे हैं, वह हो या सनातन हो, दोनों ही में चार वर्ण की व्यवस्था के साथ जीवन के चार आश्रमों का भी विधान है।
मनुष्य की आयु को 100 वर्ष की मानकर चलते हुए पहली 25 वर्ष ब्रह्मचर्य, दूसरी 25 वर्ष गृहस्थ, तीसरी 25 वर्ष वानप्रस्थ और चौथी पचीसी, जो 75 वर्ष से आरम्भ होती है उसे संन्यास आश्रम का नाम दिया गया है। निर्देश दिया गया है कि इस चौथे आश्रमी को सिर्फ धर्म प्रचार करना चाहिए और मोक्ष हासिल करने का प्रयास करना चाहिए!! ऐसा क्या हुआ कि अब ये दोनों ही इस नियत काम से बच कर सांसारिक माया-मोह में ही फंसे रहना चाहते है।
10 जुलाई को जब वे “नेता के लिए 75 साल होने का मतलब है कि आपको राजनीति छोड़ देना चाहिए और दूसरों के लिए रास्ता बनाना चाहिए ” के आप्तवचन बोल रहे थे, तब उनके भान में शायद नहीं रहा होगा कि इन दिनों इन सबके ऊपर एक नया आश्रम – कारपोरेट सेवा आश्रम – आ बैठा है और बाकी सारे आश्रमों की कालावधि वही तय कर रहा। इस कारपोरेट आश्रम के शीर्ष पण्डे ही नियुक्ति और निवृत्ति का समय तय करते हैं ;
कब-कब क्या करना है, यह दायित्व भी वे ही सौंपते हैं, जो करना है, वे ही करेंगे, बाकियों का काम खुद को निर्णायक समझने के प्रमाद में आना नहीं है। उनका काम है दिया गया प्रसाद खाना और प्रतिदान में पाई खैरात से अट्टालिकाएं और प्रासादगृह बनाना और उनमें बैठकर, जो बताया जाए, उसे दत्तचित्त भाव से अमल में लाना है। न इससे ज्यादा – न कम।
इन तीन दिनी संवाद से यह भी साफ़ हो गया कि पिचहत्तर-सतहत्तर छोडिये, यह संगठन तो पूरे सौ साल में भी बड़ा नहीं हुआ – जिस तरह बड़ा होना चाहिए, उस तरह तो बिलकुल भी बड़ा नहीं हुआ। बड़े होने का अर्थ विराटाकार होना नहीं होता, सीखते-समझते संस्कार में सुथरा होना होता है।
आरएसएस जैसे संगठनों के लिए तो यह और भी आवश्यक है, क्योंकि डॉ. हेडगेवार, डॉ. मुंजे से लेकर इनके गुरु जी आदि संस्थापकों ने इटली और जर्मनी के मुसोलिनी और हिटलर के जिस मॉडल को लिखा-पढ़ी में अपना आदर्श और प्रेरणा स्रोत मानकर यात्रा शुरू की थी, वे इतिहास में युद्ध अपराधी के रूप में दर्ज हो चुके है। हाल के दशकों में नस्ल और धर्म का बाना ओढ़कर किये गए इसी तरह के दुस्साहसों से भी दुनिया गुजर चुकी है। मगर इन पूरे सौ सालों में संघ में कुछ नहीं बदला। शताब्दी उदबोधन के संबोधन में भी वही था.
; मूल विषयों से बचना, देश और जनता के वास्तविक सवालों से मुंह चुराना और साफ़-साफ़ कहने की बजाय गोल-गोल घूमना और घुमाना। इस अदाकारी में संघ की दक्षता और क्षमता का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। ऐसे अनेक दावे इन तीन दिनों और उसके साथ हुए प्रश्नोत्तरों में किये गए। जैसे संघ प्रमुख ने दावा किया कि संघ किसी का विरोधी नहीं है, कि न उसका कोई अधीनस्थ संगठन है।
लगता है, वे यह कहना चाह रहे थे कि बी एम एस, विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद्, वनवासी कल्याण परिषद, अलानी विद्वत परिषद और फलानी इतिहास परिषद आदि-इत्यादि आँखों का भरम है।
भाजपा की हर स्तर की समितियों में संगठन सचिव के रूप में बिठाया, संघ से पठाया गया स्वयंसेवक दरअसल उस स्वयंसेवक का निजी भ्रमण है। इस बात के लिए इस देश की मजबूत धर्मनिरपेक्ष और समावेशी परम्परा की शक्ति को सलाम करना चाहिए कि उसने अपना असर इस कदर बनाए रखा है कि संघ अपनी पहचान उजागर करने और जो वह करना चाहता है, उसे कहने का साहस जुटा सके।
यह भाव इस शताब्दी का संवाद का मूल भाव था ; लगातार विकसित होती नारी मुक्ति की चेतना का असर था कि संघ प्रमुख को महिला-पुरुष दोनों को एक दूजे का पूरक बताने से तक तो आना ही पड़ा था –
यह बात अलहदा है कि इस पूरकता में कौन, किस स्थिति में है, यह उन्होंने नहीं बताया। हिंदुत्व की दुहाई दी, मगर उसकी असली, सावरकर प्रदत्त परिभाषा को दोहराने की बजाय गोल-गोल घुमाने का करतब दिखाना पड़ा और आख़िरी में महात्मा गांधी का सहारा लेना पड़ा। यह बात अलग है – और यह विशेषता संघ में ही है कि गांधी के कहे को जपते हुए यह हास्यास्पद दावा भी कर दिया कि “संघ के किसी भी स्वयंसेवक द्वारा हिंसा में शामिल होने का कोई उदाहरण नहीं है।”
बड़े इसलिए भी नहीं हुए कि लौट-फिरकर बार-बार विग्रह, विभाजन और विखंडन के अपने बुनियादी एजेंडे पर वापस लौटना नहीं भूले। धर्मांतरण पर ठीक वही बात दोहराई, वही डेमोग्राफी बदल जाने और खतरे में पड़ जाने का डर दिखाया, जिसे 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से स्वयंसेवक प्रधानमंत्री मोदी ने बोला, दिखाया था। धर्मांतरण के लिए कथित विदेशी धन आने पर भी चिंता जता दी, जबकि 11 वर्षों से सरकार में इन्हीं की तूती बोल रही है और कहीं कुछ नहीं ढूंढ पाए हैं।
भाषा के सवाल पर भी सीधे-सीधे नाम लेने की बजाय उसी दो भाषा – मातृभाषा और देशी भाषा के फार्मूले की दुहाई दी, जिस पर गैर-हिंदी प्रदेशों में जायज असंतोष है। दक्षिण में मंदिरों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए चलाये जा रहे अभियान पर भी ठप्पा लगाया और जगहों के नाम बदले जाने की मुहिम पर भी अपनी सहमति जताई।
जहां साफ़-साफ़ बोलना था, वहां अगर-मगर और किन्तु-परन्तु का सहारा लिया, कहने को कहा, मगर जो कहना था, वह बिलकुल नहीं कहा। मनुस्मृति का नाम लिया – उसे अनेक ग्रंथों में से एक बताया, मगर उसका तिरस्कार तो दूर की बात रही, खंडन या आलोचना तक नहीं की।
जातिभेद का उल्लेख किया, 1972 में हुए न जाने किन संतों के आव्हान का जिक्र भी किया, भारत के लोग जातिगत भेदभाव का विरोध करते हैं, यह भी कहा, मगर संघ इसका विरोध करता है या समर्थन, यह नहीं बताया। वह अपने गुरु गोलवलकर के दिए गए जाति के आधार पर समाज चलाने और मनुस्मृति को संविधान का दर्जा देने के कथन पर कायम हैं या उसे पीछे छोड़ आये हैं, यह नहीं बताया।
आरक्षण को तर्क से ही परे बताकर संवेदना से जुड़ा बता दिया और उसमे भी अगर लगा दिया कि यदि ऐसा – वंचित जाति समुदाय के साथ भेदभाव — हुआ है तो… । देश के युवाओं के बड़े सवाल को हवा में उड़ाते हुए कहा कि नौकरी मांगने की बजाय नौकरी देने वाला बनना चाहिए।
अभी तक जो बात औरों से कहलवाते रहे थे वह – तीन-तीन बच्चे पैदा करने की जरूरत भी कई कारणों को जोड़कर वैज्ञानिक बता दी। कुल मिलाकर यह कि आज भी बड़े न होने की जिद को इस तरह भी कायम रखा गया। एक तरफ राम मंदिर आन्दोलन में खुलकर हिस्सा लेने की बात कबूल की, इसे शायद वे अपने 100 वर्षों की उपलब्धियों में से प्रमुख उपलब्धि मानते हैं,
मगर स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के सवाल को यह कहकर टाल दिया कि “संघ कभी भी सामाजिक आंदोलनों में अपना अलग झंडा नहीं उठाता, बल्कि जहाँ भी अच्छा काम हो रहा हो, स्वयंसेवक योगदान देने के लिए स्वतंत्र हैं।“
बहरहाल, इन त्रिदिवसीय संवाद की सबसे चिंताजनक घोषणा है काशी और मथुरा को लेकर किया गया एलान। संघ प्रमुख ने कहा कि “हिन्दू जन मानस में काशी, मथुरा और अयोध्या का गहरा महत्व है – दो जन्मभूमि हैं, एक निवास स्थान है। इसके लिए हिन्दू समाज का आग्रह करना स्वाभाविक है।” इसे और आगे बढाते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमानों को ये स्थान स्वेच्छा से छोड़ देना चाहिए।
यह कोई सामान्य अपील नहीं है – यह भविष्य के क्षितिजों में से झांकता सक्रियता का वह आयाम है, जिसे लेकर लामबंदी तेज की जाने वाली है। ध्यान रहे, ये वे ही संघ प्रमुख हैं,
जिन्होंने हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग ढूँढने के लिए अपने कुनबे को ‘फटकारा’ था ; अब खुद उन्होंने मोर्चा खोलने का ऐलान-सा कर दिया है। वैसे इसमें अचरज की बात है भी नहीं, आर्थिक मोर्चे पर चौतरफा विफलताओं, दिवालिया ट्रम्पपरस्ती के चलते बढ़े वैश्विक अलगाव और कारपोरेट धन-पिशाचों द्वारा फुलाए गए गुब्बारे के पिचकने के बाद धर्म के नाम पर उन्माद फैलाना और पीड़ाओं से ध्यान बंटाना ही बचता है।
इस इरादे को समझने और उसके हिसाब से तैयारी करना उन सबका जिम्मा है, जो भारत को संवैधानिक, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, संघीय गणतंत्र के रूप में बचाए रखना चाहते हैं।
यह लेख लेखक की अपनी अभिव्यक्ति है ब्लैकआउट न्यूज़ का इस लेख से कोई सरोकार नहीं है लेखक स्वयं इसके जिम्मेदार होंगे
(लेखक ‘लोकजतन’ के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)*
कोरबा।KORBA Mobile Snatching शहर में मोबाइल स्नैचिंग की वारदातें लगातार बढ़ रही हैं। ताजा मामला बालको थाना क्षेत्र के बेलगिरी बस्ती का है, जहां केएन कॉलेज के अतिथि प्राध्यापक विजेंद्र नामदेव के साथ मोबाइल लूट की घटना घटित हुई।
KORBA Mobile Snatching
Mobile Snatching
जानकारी के अनुसार, प्राध्यापक रविवार की रात करीब 9 बजे मोबाइल पर बातचीत करते हुए बजरंग चौक की ओर जा रहे थे। इसी दौरान पीछे से आए बाइक सवार दो युवकों ने अचानक मोबाइल छीन लिया और तेज रफ्तार से फरार हो गए। जब तक पीड़ित कुछ समझ पाते, बदमाश मौके से निकल चुके थे।
KORBA Mobile Snatching
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घटना की सूचना मिलते ही पुलिस ने
मामला दर्ज कर लिया है और आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि जल्द ही दोनों बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
बालकोनगर, 8 सितम्बर 2025। Onam Celebration at BALCO वेदांता समूह की कंपनी भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) में ओणम उत्सव बड़े हर्षोल्लास और धार्मिक श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर बालको अयप्पा मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया, जिसमें कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं निदेशक श्री राजेश कुमार और वरिष्ठ अधिकारियों ने पूजा में भाग लिया। उन्होंने परंपरागत रीति-रिवाज़ों के साथ पूजा-अर्चना कर बालको के उत्तरोत्तर प्रगति एवं कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए सुख, शांति और समृद्धि की कामना की।
Onam Celebration at BALCO
Onam Celebration at BALCO
पूरे परिसर में भक्तिमय और सांस्कृतिक वातावरण छा गया। मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया और पारंपरिक फूलों की रंगोलियों (पुक्कलम) ने ओणम की विशेष छटा बिखेरी। पूजा उपरांत भक्ति संगीत और स्तुति से वातावरण और अधिक आध्यात्मिक हो गया।
Onam Celebration at BALCO
Onam Celebration at BALCO
कार्यक्रम में बालको के कर्मचारी एवं टाउनशिप के समस्त श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही, जिन्होंने पूरे उत्साह से ओणम पर्व का आनंद लिया। कई परिवारों ने पारंपरिक वेशभूषा धारण कर इस पर्व की सांस्कृतिक गरिमा को और बढ़ाया। ओणम साद्या (पारंपरिक भोज) की महक और सामूहिकता ने कार्यक्रम को सफल आध्यात्मिक बना दिया।
Onam Celebration at BALCO
बालको समुदाय में यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एकता, भाईचारे और सांस्कृतिक विविधता का उत्सव भी बना। कंपनी के जीईटी हॉस्टल में ओणम के अवसर पर रविवार को विशेष भोजन का आयोजन किया गया। 1989 से लगातार हर साल बालको के अयप्पा मंदिर में ओणम का त्योहार मनाया जा रहा है। कंपनी केवल औद्योगिक प्रगति ही नहीं बल्कि समाज और संस्कृति के उत्सवों को भी पूरे दिल से अपनाया है।
दीपका – गेवरा : Memorandum of Muslim society to the MLA गेवरा दीपका क्षेत्र मे विगत 40 वर्षो से मदरसा इजहारुल ऊलूम संचालित है जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु व्यवस्था के आभाव मे अभी तक आयोजन किया जाता रहा है.
Memorandum of Muslim society to the MLA
ज्ञापन
जिसको निरंतर जारी रखने मदरसा के सदर मो. जहुर अंसारी के साथ गेवरा दीपका के मुस्लिम जनप्रतिनिधियो और कमेटी के सदस्यों द्वारा कटघोरा विधानसभा के विधायक प्रेमचंद पटेल से मिलकर सामाजिक कार्यक्रम सहित सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु गेवरा दीपका मे विधायक मद से 10 लाख की सर्वसुविधायुक्त सांस्कृतिक भवन निर्माण हेतु ज्ञापन सौपा।
Memorandum of Muslim society to the MLA
जिसमे प्रमुख रूप से मो. जहुर अंसारी, सकिल अहमद, परवेज अंसारी, इस्तेख़ार अली पार्षद गेवरा दीपका, सोनू खान, सहित समाज के युवा साथी उपस्थित थे।
Chhattisgarh : CG farmers in food crisis हर साल की तरह इस बार भी पूरे देश में किसान खाद की भयंकर कमी का सामना कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। इस साल भी छत्तीसगढ़ की सहकारी सोसाइटियों में यूरिया और डीएपी खाद की कमी हो गई है। गरीब किसान दो-दो दिनों तक भूखे-प्यासे लाइन में खड़े है और फिर उन्हें निराश होकर वापस होना पड़ रहा है। सरकार उन्हें आश्वासन ही दे रही है कि पर्याप्त स्टॉक है, चिंता न करे।
किसान अपने अनुभव से जानता है कि मात्र आश्वासन से उसे खाद नहीं मिलने वाला। और यदि वह जद्दोजहद न करें, तो धरती माता भी उसे माफ नहीं करेगी और पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। अपनी फसल बचाने के लिए अब उसके पास एक सप्ताह का भी समय नहीं है। इसलिए वह सड़कों पर है। प्रशासन की लाठियां भी खा रहा है और अधिकारियों की गालियां भी। यह सब इसलिए कि अपना और इस दुनिया का पेट भरने के लिए उसे धरती माता का पेट भरना है।
कृषि वैज्ञानिक पी एन सिंह ने कहा CG farmers in food crisis
CG farmers in food crisis
खरीफ सीजन में धान छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल है।धान की फसल के लिए यूरिया और डीएपी प्रमुख खाद है। कृषि वैज्ञानिक पी एन सिंह के अनुसार एक एकड़ धान की खेती के लिए 200 किलो यूरिया खाद चाहिए। इस हिसाब से छत्तीसगढ़ को कितना खाद चाहिए?
19 लाख टन के मुकाबले मात्र 7 लाख टन ही उपलब्ध CG farmers in food crisis
CG farmers in food crisis
छत्तीसगढ़ में लगभग 39 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। तो प्रदेश को 19 लाख टन यूरिया की जरूरत होगी, जबकि सहकारी सोसायटियों को केवल 7 लाख टन यूरिया उपलब्ध कराने का लक्ष्य ही राज्य सरकार ने रखा है। इस प्रकार प्रदेश में प्रति हेक्टेयर यूरिया की उपलब्धता केवल 122 किलो और प्रति एकड़ 49 किलो ही है। आप कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में इतनी उन्नत खेती नहीं होती कि 19 लाख टन यूरिया खाद की जरूरत पड़े। यह सही है। लेकिन क्या सरकार को उन्नत खेती की ओर नहीं बढ़ना चाहिए और इसके लिए जरूरी खाद उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नहीं बनती?
देश मे रासायनिक खाद का पूरे वर्ष में प्रति एकड़ औसत उपभोग 68 किलो है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह मात्र 30 किलो ही है। वर्ष 2009 में यह उपभोग 38 किलो प्रति एकड़ था। स्पष्ट है कि उपलब्धता घटने के साथ खाद का उपभोग भी घटा है और इसका कृषि उत्पादन और उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। आदिवासी क्षेत्रों में तो यह उपभोग महज 10 किलो प्रति एकड़ ही है। क्या एक एकड़ में 10 किलो रासायनिक खाद के उपयोग से धान की खेती संभव है?
आदिवासी क्षेत्रों में यदि खेती इतनी पिछड़ी हुई है, तो इसका कारण उनकी आर्थिक दुरावस्था भी है। सोसाइटियों के खाद तक उनकी पहुंच तो है ही नहीं।
छत्तीसगढ़ मे डीएपी और यूरिया की बढ़ी कालाबाज़ारी CG farmers in food crisis
CG farmers in food crisis
छत्तीसगढ़ में डीएपी और यूरिया की कमी से खाद की कालाबाजारी बढ़ी है और 266 रुपए बोरी की यूरिया 1000 रुपए में और 1350 रुपए की कीमत वाली डीएपी की बोरी 2000 रुपए में बिक रही है। भाजपा सरकार इस कालाबाजारी को रोकने में असफल साबित हुई है। इससे फसल की लागत बढ़ जाने से खेती-किसानी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है। यह संकट इस तथ्य के बावजूद है कि छत्तीसगढ़ में प्रति एकड़ खाद का उपयोग अखिल भारतीय औसत की तुलना में बहुत कम है। इस समय सभी प्रकार के खाद के उपयोग का अखिल भारतीय औसत 120 किलो प्रति एकड़ है, जबकि छत्तीसगढ़ में मात्र 38 किलो।
छत्तीसगढ़ में धान की खेती सहित लगभग 48 लाख हेक्टेयर रकबा में कृषि कार्य होता है। धान की फसल मुख्य है, लेकिन गन्ना, मक्का और अन्य मोटे अनाज, चना और अन्य दलहन, तिल और अन्य तिलहन और सब्जी की खेती भी भरपूर होती है। भूमि की प्रकृति, मौसम और फसल की जरूरत के अनुसार विभिन्न प्रकार के खादों का उपयोग होता है।
छत्तीसगढ़ में सरकार खरीफ सीजन के लिए औसतन 14 लाख टन खाद उपलब्ध कराती है, जिसमें 7 लाख टन यूरिया, 3 लाख टन डीएपी और 2 लाख टन एसएसपी शामिल है। यह जरूरत से बहुत कम है। लेकिन इस उपलब्धता का भी 45 प्रतिशत निजी क्षेत्र के जरिए वितरित किया जाता है और यह खाद संकट की आड़ में कालाबाजार में ही बिकता है।
वर्तमान खाद संकट डीएपी की भारी कमी से पैदा हुआ है और सरकार ने डीएपी वितरण का लक्ष्य 3 लाख टन से घटाकर 1 लाख टन कर दिया है। सरकार का तर्क है कि 3 बोरी एसएसपी और 1 बोरी यूरिया के सम्मिलित उपयोग से 1 बोरी डीएपी की कमी की भरपाई हो सकती है।
इस तर्क के अनुसार सरकार को आनुपातिक रूप से 2 लाख टन यूरिया और 6 लाख टन एसएसपी खाद अतिरिक्त उपलब्ध कराना चाहिए, लेकिन यूरिया की मात्रा बढ़ाई नहीं गई है और एसएसपी 3.5 लाख टन ही अतिरिक्त उपलब्ध कराया जा रहा है। इस प्रकार, प्रदेश में अब डीएपी के साथ ही यूरिया और एसएसपी की भी कमी हो गई है।
डीएपी की कमी के बाद अब छत्तीसगढ़ को कम से कम 22 लाख टन खाद की जरूरत है, लेकिन उपलब्ध केवल 17 लाख टन ही है। 5 लाख टन खाद की कमी है, जिससे खेती प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी। सरकार का दावा है कि उसने इस कमी की पूर्ति भी नैनो यूरिया और नैनों डीएपी के जरिए कर दी है। उसने सहकारी और निजी क्षेत्र को कुल 2.91 लाख बोतल (500 मिली.) नैनो यूरिया की और 2.93 लाख बोतल (500 मिली.) नैनो डीएपी उपलब्ध कराई है।
किसानों के मन में नैनो खाद की उपयोगिता और प्रभावशीलता के बारे में काफी संदेह है। लेकिन यदि मजबूरी में भी वे इन तरल उर्वरकों का उपयोग करते हैं, तो भी इसका कुल प्रभाव 7245 टन खाद के बराबर ही होगा, जो उर्वरकों की कुल कमी के केवल नगण्य हिस्से (1.5 प्रतिशत) की ही भरपाई करेंगे। डीएपी की कमी की भरपाई के लिए उसने जो कदम उठाने का दिखावा किया है, उसके कारण खाद संकट और गहरा गया है, क्योंकि अब केवल डीएपी की नहीं, यूरिया और एसएसपी की भी कमी हो गई है।
लेकिन सरकार 5 लाख टन खाद की कमी की पूर्ति का दावा नैनो खाद से करने के दावे पर अड़ी है, तो फिर सरकार के इस चमत्कार को सराहा जाएं या फिर नमस्कार किया जाये!
छत्तीसगढ़ की 1333 सहकारी सोसाइटियों में सदस्यों की संख्या 14 लाख है, जिसमें से 9 लाख सदस्य ही इन सोसाइटियों से लाभ प्राप्त करते हैं। प्रदेश में 8 लाख बड़े और मध्यम किसान है, जो इन सोसाइटियों की पूरी सुविधा हड़प कर जाते हैं। इन सोसाइटियों से जुड़े 5 लाख सदस्य और इसके दायरे के बाहर के 20 लाख किसान, कुल मिलाकर 25 लाख लघु व सीमांत किसान इनके लाभों से वंचित हैं और बाजार के रहमो-करम पर निर्भर है।
उनकी हैसियत इतनी नहीं है कि वे बाजार जाकर सरकारी दरों से दुगुनी-तिगुनी कीमत पर कालाबाजारी में बिक रहे खाद को खरीद सके।
यदि किसानों को खाद सहज रूप से मिले, तो भी डीएपी की जगह यूरिया और एसएसपी खाद के उपयोग से प्रति एकड़ लागत 1000 रूपये बढ़ जाएगी। लेकिन यदि कालाबाजारी में उन्हें खाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो खेती-किसानी पर 2000 रुपए प्रति एकड़ की अतिरिक्त लागत बैठेगी। यदि प्रति एकड़ औसतन 1500 रुपए अतिरिक्त लागत को ही गणना में लें, तो 1800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार किसान समुदाय पर पड़ेगा।
इससे खेती-किसानी और ज्यादा घाटे में जायेगी। प्रधानमंत्री किसान योजना में या बोनस में भी इतनी राशि किसानों को नहीं मिलती। यह इस हाथ ले, उस हाथ दे वाली स्थिति है।
भाजपा के ‘सायं-सायं’ राज में कॉरपोरेटों की बल्ले बल्ले CG farmers in food crisis
किसान आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ अग्रणी राज्यों में से एक है। जब तक एनसीआरबी के आंकड़े उपलब्ध थे, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि यहां हर साल एक लाख किसान परिवारों के बीच 45 किसान आत्महत्या कर रहे थे। मोदी राज में जितने बड़े पैमाने पर कृषि का कॉरपोरेटीकरण हुआ है और भाजपा के ‘सायं-सायं’ राज में इस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेटों के हाथों में सौंपा जा रहा है,
उससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कृषि संकट और बढ़ गया है और प्रदेश में किसान आत्महत्याओं में और बढ़ोतरी हो गई होगी।
किसानों की दुर्दशा के लिए मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियां जिम्मेदार हैं। मोदी सरकार उर्वरक क्षेत्र में निजीकरण की जिन नीतियों पर चल रही है, उसके कारण खाद की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया है। इन नीतियों की कीमत किसान अपनी जान देकर चुका रहे हैं। वे लाइन में खड़े-खड़े मर रहे हैं, वे साहूकारी और माइक्रोफाइनेंस कर्ज के मकड़जाल में फंसकर मर रहे हैं या फिर वे आत्महत्या कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की खेती-किसानी के लिए यह खतरनाक स्थिति है।
लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।
कोरबा Brother and sister sentenced to life imprisonment कोरबा जिले में आये दिन होने वाले वाद-विवाद से क्षुब्ध होकर जीजा को ही रास्ते से हटाने का काम बहन के साथ मिलकर भाई ने कर दिया। इसके बाद हत्या को आत्महत्या प्रचारित करने का काम भाई-बहन ने मिलकर किया। आत्महत्या बताए जाने वाले इस मामले में न्यायाधीश ने हत्या और साक्ष्य छिपाने का दोषी पाते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया है।
राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने मजबूत पैरवी की। सूचक के द्वारा 18 जून 2024 को मधुसूदन हंसराज नामक व्यक्ति की मृत्यु के संबंध में पुलिस चौकी रजगामार सूचना दी थी।
Brother and sister sentenced to life imprisonment
Brother and sister sentenced to life imprisonment
सूचक ने पुलिस को बताया था कि वह अपनी पत्नी एवं बच्चों के साथ अपने ससुराल शांतिनगर रजगामार में रहकर मजदूरी कर जीवन यापन करता था व शराब पीने का आदी था। 17 जून 2024 की रात्रि भी वह शराब पिया हुआ था। रात्रि करीब 10-11 बजे पाती का पत्नी के साथ वाद-विवाद हुआ। उसके बाद पाती अपने कमरे से निकल गया और बाहर का दरवाजा बंद कर आंगन के पास नहानी रुम के सामने नायलोन रस्सी से म्यार में फांसी लगाकर लटक गया।
उक्त जानकारी होते ही मधुसूदन की पत्नी सरस्वती ने पड़ोसी को बात बतायी। सूचक अपनी पत्नी के साथ उसके घर गया और बताये स्थान पर वे तीनों जाकर देखे, तो मधुसूदन बाथरुम में फांसी के फंदे पर लटक रहा था। तुरंत डॉयल 112 को सूचित किया गया।
Brother and sister sentenced to life imprisonment
Brother and sister sentenced to life imprisonment
सूचना प्राप्त होते ही डॉयल 112 से संबंधित आरक्षक एवं वाहन चालक मौके पर आये। प्रकरण में मर्ग कायम कर विवेचना के दौरान पूछताछ से यह तथ्य ज्ञात हुआ कि उसके द्वारा अपनी पत्नी के चरित्र पर शंका किया जाता था और उक्त कारण से उन दोनों में विवाद होता था। भाई उनके मध्य होने वाले विवाद से तंग आ चुका था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर में चोट से मौत की पुष्टि हुई। उक्त आधारों पर अभियुक्तगण को अभिरक्षा में ले जेल दाखिल कराया गया। पुलिस ने विवेचना पूर्ण कर प्रकरण को विचारण हेतु न्यायालय में प्रस्तुत किया।
Brother and sister sentenced to life imprisonment
न्यायालय तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश,पीठासीन न्यायाधीश सुनील कुमार नन्दे ने सभी तथ्यों पर विचार कर आरोपियों को दोषी पाया। अतिरिक्त लोक अभियोजक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने इन्हें कठोर सजा देने पक्ष रखा। न्यायाधीश ने सिद्धदोषी को धारा 302, 34 में आजीवन कारावास एवं 100-100/- रूपये अर्थदण्ड तथा धारा 201,34 भादवि में 03-03 वर्ष का कारावास व 100-100/- रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया है।
अर्थदण्ड जमा न करने पर दोनों सजा में एक-एक माह के अतिरिक्त कारावास की सजा पृथक से भुगतायी जायेगी। सभी सजाएँ साथ-साथ चलेंगी।
कोरबा (ब्लैकआउट न्यूज़) chain snatching in korba कोरबा शहर में 5 सितंबर को शाम के समय दो अलग-अलग स्थानों पर चेन स्नेचिंग की वारदातें हुईं। दोनों घटनाओं में बाइक सवार दो युवक शामिल थे, जिन्होंने महिलाओं के गले से सोने की चेन छीन ली।
पहली वारदात chain snatching in korba
chain snatching in korba
पहली घटना कोतवाली थाना क्षेत्र के सीतामणी मुख्य मार्ग में गणेश पंडाल के पास हुई। व्यवसायी अशोक अग्रवाल की पत्नी संतोष देवी घर के सामने गणेश पंडाल में प्रसाद लेने गई थीं। जब वह वापस अपने घर की ओर आ रही थीं, तभी बाइक सवार दो युवक आए और उनके गले से सोने की चेन छीनकर भाग गए। चेन का वजन लगभग 2 तोला था, जिसकी कीमत लगभग 2 से लाख रुपये है।
दूसरी वारदात chain snatching in korba
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दूसरी घटना सिविल लाइन थाना क्षेत्र के आरपी नगर में दशहरा मैदान के पास हुई। संगीता श्रीवास्तव पति मनोज कुमार श्रीवास्तव निवासी MIG आवास क्रमांक 34 आरपी नगर जब दशहरा मैदान के पास से पैदल जा रही थीं, तभी बाइक सवार दो युवक आए और उनके गले से सोने की चेन छीनकर भाग गए।
पुलिस ने दोनों घटनाओं में अज्ञात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपियों की पहचान करने की कोशिश कर रही है। पुलिस को शक है कि दोनों घटनाओं में एक ही गिरोह शामिल हो सकता है ।
बालकोनगर, 6 सितम्बर 2025। BALCO celebrated Teachers Day शिक्षक वे मार्गदर्शक होते हैं जो समाज का भविष्य गढ़ते हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) ने उनके समर्पण और योगदान को सराहना की। बालको प्रबंधन ने टाउनशिप के विभिन्न विद्यालयों का दौरा कर शिक्षकों को व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद दिया। ‘गुरु बिन ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिले न मोक्ष’ भाव को जीवंत करते हुए बालको ने 400 से अधिक शिक्षकों का सम्मानित किया।
BALCO celebrated Teachers Day
BALCO celebrated Teachers Day
इस अवसर पर दिल्ली पब्लिक स्कूल, बालको टाउनशिप स्कूल (बीटीएस), डीएवी, मिनीमाता, शासकीय कन्या विद्यालय, परसाभाठा, एमजीएम, बालसदन, शिक्षानिकेतन, चंद्रोदय, जीएस सेक्टर-5, स्वामी आत्मानंद तथा आदर्श मंदिर विद्यालयों का दौरा किया गया। प्रबंधन द्वारा शिक्षकों से संवाद किया गया और उनके अथक परिश्रम को सराहा। इस दौरान शिक्षकों को एक छोटा-सा उपहार भेंट कर उनके समर्पण और मेहनत को प्रणाम किया गया।
BALCO celebrated Teachers Day
BALCO celebrated Teachers Day
शिक्षकों ने हर्ष और आत्मीयता से आभार को स्वीकार किया। यह केवल एक सम्मान समारोह नहीं था, बल्कि कृतज्ञता और संबंधों का पल था, जिसने बालको और स्थानीय शैक्षिक समुदाय के बीच रिश्तों को और मजबूत किया। बालको की यह सार्थक पहल वास्तव में शिक्षक दिवस की भावना को प्रकट करती है और उन गुरुओं को सम्मान देती है जो अपना जीवन ज्ञान, संस्कार और राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में समर्पित करते हैं।
BALCO celebrated Teachers Day
BALCO celebrated Teachers Day
बालको की यह पहल केवल शिक्षकों के प्रति सम्मान ही नहीं, बल्कि समाज के भविष्य निर्माण में उनकी भूमिका को मान्यता देने का भी प्रतीक है। कंपनी ने एक बार फिर सिद्ध किया कि वह औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक और शैक्षिक विकास में भी निरंतर योगदान दे रही है।