सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। हालांकि अदालत ने हिंसा, जबरदस्ती या हस्तक्षेप के किसी भी खतरे के बिना संबंध बनाने के उनके अधिकार को बरकरार रखा है और ऐसे जोड़ों की चिंताओं की परख करने के लिए केंद्र से कमेटी बनाने के लिए कहा है।
शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे, लेकिन एकमत के फैसले में कहा, ऐसे गठजोड़ के लिए कानून बनाना और मान्यता देना सिर्फ संसद या विधानसभाओं का अधिकार है। साथ ही, कोर्ट ने 3-2 के बहुमत के फैसले में कहा, ऐसे जोड़ों को बच्चा गोद लेने का भी अधिकार नहीं है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस पर एकमत थी कि कानून समान लिंग वाले जोड़ों के विवाह के अधिकार को मान्यता नहीं देता। पीठ ने एकमत से यह भी कहा, समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता प्रदान करने के लिए विधायिका को निर्देश देना अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। संविधान पीठ ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह के अधिकार को मान्यता देने की मांग करने वाली 21 याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है।
सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा के अलग-अलग लिखे गए चार फैसलों में समलैंगिक जोड़ों को विशेष विवाह अधिनियम के दायरे में लाने के लिए प्रावधानों को रद्द करने या उनमें बदलाव करने से भी इन्कार कर दिया। इनमें से सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद दिए जाने के पक्ष में थे, जबकि शेष तीनों जजों ने इसके उलट राय दी। मार्च और अप्रैल में दोनों पक्षों की ओर से 10 दिन तक चली गहन बहस के बाद पीठ ने 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। याचिकाओं में न्यायपालिका से समलैंगिक शादी को मान्यता देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करने और उन्हें बच्चे गोद लेने की मांग की गई थी।
विवाह मौलिक नहीं वैधानिक अधिकार
बहुमत की राय वाले जजों ने कहा, विवाह का अधिकार मौलिक नहीं बल्कि सिर्फ वैधानिक है। ऐसे में समलैंगिक शादी को मान्यता ऐसा अधिकार नहीं हो सकता है, जिसे कानूनी रूप से लागू किया जा सके। हालांकि न्यायाधीश इस पर बंटे हुए थे कि अदालत इस मामले में कितनी दूर तक जा सकती है। जस्टिस भट, जस्टिस कोहली और जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, संविधान के तहत विवाह कोई अनक्वालिफाइड (बिना शर्त) अधिकार नहीं है और इस प्रकार, इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।
यह है बहुमत का फैसला (जस्टिस भट, जस्टिस कोहली और जस्टिस नरसिम्हा)
- सामाजिक गठजोड़ को मान्यता का अधिकार केवल कानूनों के माध्यम से ही मिल सकता है। अदालतें ऐसे नियामकीय ढांचे के निर्माण का आदेश नहीं दे सकतीं।
- समलैंगिकाें को एक-दूसरे के प्रति प्यार जताने की मनाही नहीं है, लेकिन उन्हें शादी की मान्यता का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।
- समलैंगिकाें को अपना साथी चुनने का अधिकार है और इस अधिकार को संरक्षित किया जाना चाहिए।
- मौजूदा कानून समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं देते।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी रूप से शादी करने का अधिकार है।
- केंद्र सरकार सभी प्रासंगिक कारकों का अध्ययन करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करेगी।
अल्पमत की राय (सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल)
- समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक गठजोड़ का अधिकार है। हालांकि मौजूदा कानूनों के तहत शादी का अधिकार नहीं है।
- ऐसे जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार है। दत्तक ग्रहण विनियमों का विनियमन 5(3), समलैंगिकाें के खिलाफ भेदभाव है, जो संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।
- विवाह सार्वभौमिक अवधारणा नहीं है। नियमों के कारण उसे कानूनी संस्था का दर्जा प्राप्त हुआ है।
- संविधान विवाह का मौलिक अधिकार नहीं देता है।
- कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकता।
- समलैंगिक विवाह की कानूनी वैधता तय करना संसद का काम है।
ट्रांसजेंडर के विषमलिंगी से शादी के हक को मान्यता
पीठ ने ट्रांसजेंडर या मध्यलिंगी व्यक्तियों के हेट्रोसेक्सुअल (विषमलिंगी) व्यक्ति से शादी के अधिकार को मान्यता दे दी। कहा, विषमलिंगी संबंधों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है।