बस्तर दशहरा की सबसे महत्वपूर्ण काछनगादी रस्म शनिवार को निभाई जाएगी। 7 साल की पीहू पर काछनदेवी सवार होंगी। वह बस्तर राजपरिवार के सदस्यों को बेल के कांटों से बने झूले पर झूलकर दशहरा मनाने की इजाजत देंगी। इसके लिए पीहू पिछले कई दिनों से देवी की आराधना कर रही हैं।
दरअसल, 14 अक्टूबर की शाम जगदलपुर के भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में इस को रस्म निभाया जाएगा। दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली पीहू इस विधान को पूरा करने के लिए पिछले कुछ दिनों से उपवास भी रखी हुई है। यह परंपरा करीब 615 सालों से चली आ रही है।
यह है मान्यता
पनका जाति की कुंवारी कन्या ही इस रस्म को अदा करती हैं। 22 पीढ़ियों से इसी जाति की कन्याएं इस रस्म की अदायगी कर रही हैं। पिछले साल भी पीहू ने इस रस्म को निभाया था। इससे पहले अनुराधा ने विधान पूरा किया था। पीहू ने बताया कि उसे इस रस्म को पूरा करने का मौका मिला है, वो बहुत खुश है।
काछनगुड़ी में होगी रस्म
काछनगुड़ी में यह रस्म होगी। जिसे देखने और माता से आर्शीवाद लेने सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। जब से पीहू देवी की आराधना कर रहीं हैं तब से काछनगुड़ी में रोज शाम को विशेष पूजा हो रही है। पीहू की दादी-नानी ने बताया कि, हर दिन भजन-कीर्तन भी होता है। देवी को पूजा जाता है।
यह भी जानिए
कुछ जानकारों के बताया कि, बस्तर महाराजा दलपत देव ने काछनगुड़ी का जीर्णोद्धार करवाया था। करीब 615 साल से यह परंपरा इसी गुड़ी में संपन्न हो रही है। काछनदेवी को रण की देवी भी कहा जाता है।
पनका जाति की महिलाएं धनकुल वादन के साथ गीत भी गाती हैं। आज बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव काछनगुड़ी पहुंचेंगे। फिर देवी से दशहरा मनाने की अनुमति लेंगे।