The saga of 2 years of CJI Chandrachud अलविदा जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़,आज विदाई, कार्यकाल के 2 साल क्या खोया क्या पाया

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दिल्ली/(blackout news)The saga of 2 years of CJI Chandrachud 8 नवंबर 2024 को सेवा निवृत्त होने जा रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ दो साल पहले बहुत उच्च मोरल ग्राउंड लेकर भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हुए थे।उनसे बहुत उम्मीदें थीं, केंद्र सरकार के समक्ष रीढ़ को सीधी रखने की लोगों की उम्मीद थी जो उनके पुर्ववर्ती न्यायधीशों के फैसलों से एक वर्ग में उपजे न्यायालय की साख पर चिंता के कारण थीं तो दूसरे उनकी गोद ली हुई दो अपाहिज बेटियां।

The saga of 2 years of CJI Chandrachud

The saga of 2 years of CJI Chandrachud
CJI DY CHANDRCHURN

उम्मीद थी कि जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ अपने दो साल के कार्यकाल में न्याय के सिद्धांत को व्यवहारिकता में बदल देंगे और कम से कम वह केंद्र की मोदी सरकार के साथ खड़े तो नहीं ही दिखाई देंगे मगर 2 साल के कार्यकाल के अंत में जाते जाते वह नरेंद्र मोदी की आवभगत और स्वागत में खड़े दिखाई दिए।जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और रिटायरमेंट करीब आते आते ही जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने‌ जो बयानबाजी, मीडिया फ्रेंडली चरित्र और सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कराई, भाषणबाजी की , कोर्ट में वकीलों को धौंस दिया और अपने ही बेच के जजों से बहस की उससे लोगों में उनकी छवि खंडित हुई।

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और इसी कारण वह आलोचना के घेरे में हैं, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे कह रहे हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ को कोई याद नहीं रखना चाहेगा तो महमूद प्राचा कह रहे हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ घटिया इंसान हैं और इनका फेयरवेल नहीं होना चाहिए, तो कोई कह रहा है कि इनके फेयरवेल में 70% वकील जाना ही नहीं चाहते‌, वैकल्पिक मीडिया और सोशल मीडिया पर उनकी भारी आलोचना हो रही है।

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CJI DY CHANDRCHURN WITH PM NARENDR MODI

दरअसल भारी उम्मीदों का बोझ लिए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के शपथ के पहले ही न्यायपालिका की छवि और न्याय के चेहरे को बचाए रखने की उम्मीद से देश उनको देख रहा था क्योंकि इनके किसी पुर्ववर्ती ने राज्यसभा की सदस्यता लेकर खुद के मैनेज होने को सिद्ध किया तो किसी की पैंट ही सरकार के सामने सार्वजनिक रूप से उतर गयी।

 

दो साल के अपने कार्यकाल में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने न्याय की देवी की आंखों से पट्टी खींच कर हटा दिया और यह संदेश दिया कि अब कानून और अदालतें उनके सामने पेश हुए लोगों को देख पहचान सकतीं हैं और उसी आधार पर फैसला देंगी।

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CJI DY CHANDRCHURN

भारत के मुख्य न्यायाधीश,डी वाई चंद्रचुड़ जी चला चली की बेला में कह रहे हैं कि “वह देखना चाहते हैं कि देश उनको कैसे याद करेगा” तो आपको बता दूं कि, महत्वपूर्ण मामलों में आधा अधुरा फैसला देकर लीपापोती के अतिरिक्त सरकार की चापलूसी के लिए आपको याद किया जाएगा।

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ को मैं ऐसे चीफ़ जस्टिस के तौर पर याद करूंगा जिन्होंने अपनी अदालत में चोर को पकड़ा , चोरी पकड़ी, “चोर ने चोरी की यह फैसला भी दिया” और फिर चोरी का सामान चोर को देकर उसे बरी कर दिया।

The saga of 2 years of CJI Chandrachud

मैं कम से कम ऐसे चार फैसलों का ज़िक्र करके इस बात को सिद्ध करने का प्रयास करूंगा।

1- इलेक्टोरल बोंड – इलेक्टोरल बोंड में उनका फैसला साहसिक था , उन्होंने अपने फैसले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को बाध्य किया कि वह सारी जानकारी सार्वजनिक करे , स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सार्वजनिक भी की और दुनिया ने देखा कि कैसे चंदा लेकर ठेके दिए गए, चंदा लेकर ज़मनत दी गयी , चंदा लेकर आरोपी को गवाह बनाया गया।

यह स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार था , उच्चतम न्यायालय ने कहा यह असंवैधानिक है , अवैध है और इतना सबकुछ स्पष्ट होने के बावजूद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कुछ नहीं किया, और जिसके पास भ्रष्टाचार का जितना धन था उसी के पास रहा और मामला रफा-दफा हो गया और न तो पैसा जब्त हो और न किसी को सजा हुई।

अर्थात अपनी अदालत में चोर को पकड़ा , चोरी पकड़ी, “चोर ने चोरी की” यह फैसला भी दिया और फिर चोरी का सामान चोर को देकर उसे बरी कर दिया।

2- महाराष्ट्र सरकार:- महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को गिराकर बनाई शिंदे सरकार को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने “अवैध” कहा , मगर सरकार चलती रही , उच्चतम न्यायालय के महाराष्ट्र की सरकार को अवैध घोषित करने के बावजूद शिंदे सरकार के खिलाफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कोई फैसला नहीं दिया और शिंदे की अवैध सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

अर्थात अपनी अदालत में चोर को पकड़ा , चोरी पकड़ी, चोर ने चोरी की यह फैसला भी दिया और फिर चोरी का सामान चोर को देकर उसे बरी कर दिया।

3- चंडीगढ़ मेयर चुनाव:- जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह की चोरी पकड़ी, अनिल मसीह को लोकतंत्र का हत्यारा कहा , फैसला भी पलटा मगर चोरी करने वाले को बख्श दिया।

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लोकतंत्र के हत्यारे अनिल मसीह एक माफ़ी मांग कर बच गये।

4- बाबरी मस्जिद:- यह फैसला चोर को चोरी किये माल को देने का स्पष्ट मामला था जिसमें जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और अन्य चार जजों वाली बेंच ने फैसला दिया कि , मुग़ल बादशाह बाबर ने कोई राम मंदिर नहीं तोड़ा , बाबरी मस्जिद किसी राम मंदिर को तोड़ कर नहीं गिराई गई, बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर का कोई ढांचा नहीं है , बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को शहीद करना एक अपराधिक घटना थी , बाबरी मस्जिद में चोरी से मुर्ति रखना अपराधिक घटना थी।

इतने अपराध मान लेने के बाद बेंच ने अपराधियों को सज़ा देने की बजाय , पीड़ित पक्ष को मस्जिद की ज़मीन देने की बजाय उस पक्ष को बाबरी मस्जिद की ज़मीन दे दी जिस पर उस अपराध का मुकदमा चल रहा था। वहां मंदिर बन गया और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ वहां दर्शन भी कर आए।

स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी अदालत में चोर को पकड़ा , चोरी पकड़ी, चोर ने चोरी की यह फैसला भी दिया और फिर चोरी का सामान चोर को देकर उसे बरी कर दिया।

देश में न्याय का यह माडल देने के बाद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ जी अब कह रहे हैं कि उन्होंने यह फैसला ईश्वरीय आदेश के बाद दिया था।

क्षमा करिए न्यायाधीश महोदय हमारा ईश्वर ऐसे फैसले का आदेश नहीं दे सकता, यह आपका रिटायरमेंट के बाद की संभावनाओं को जीवित रखने के लिए दिए बयान से अधिक कुछ नहीं है।

दरअसल ब्युरोक्रेसी में रिटायरमेंट के बाद मलाईदार पद ,शहासिल करने वाली इच्छा अब ज्युडिशियरी में भी पैदा हो गई है और इसीलिए

“मैं, अ.भा. भारत के सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (या न्यायाधीश) (या भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) नियुक्त हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा रखूँगा, 1 [कि मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, कि मैं सम्यक रूप से और निष्ठापूर्वक तथा अपनी सर्वोत्तम योग्यता, ज्ञान और विवेक के साथ बिना किसी भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के अपने पद के कर्तव्यों का पालन करूँगा और मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।”

की शपथ लेने वाले जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ “सर्वोत्तम योग्यता, ज्ञान और विवेक के साथ बिना किसी भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने संविधान और विधियों की मर्यादा की बजाय उस भगवान से निर्णय का आदेश ले‌ रहे थे जो बाबरी मस्जिद में खुद एक पक्ष थे।

मज़ेदार बात यह है कि भगवान के आदेश से दिए फैसले में सह-लेखन और फिर फैसले पर हस्ताक्षर करने की हिम्मत भी ना कर सके।

इसके अतिरिक्त नरेंद्र मोदी और अमित शाह से जुड़े सभी मुकदमों में वह रीढ़ की हड्डी सीधी नहीं रख सके और जस्टिस लोया केस को तो उन्होंने बांबे हाईकोर्ट से मंगाकर अमित शाह को क्लीन चिट दे दी।

ऐसे ही अडाणी के हर मामले को रफा-दफा करना, उमर खालिद , शरजिल इमाम, खालिद सैफी , गुलफ़िशा की बिना ट्रायल और बिना सुनवाई के पिछले 5 सालों से निरंतर कैद में रखने पर चुप्पी के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। उन्हें याद किया जाएगा वर्शशिप ऐक्ट -1991 के बावजूद ज्ञानव्यापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति देना और EVM मामले में लीपापोती करना।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ धार्मिक जो हैं।

भीमा कोरेगांव मामले में आरोपियों को जेल में रहने देने, फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु और अंततः प्रोफेसर जीएन साईबाबा की मृत्यु के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। उन्हें याद किया जाएगा कि मास्टर आफ रोस्टर होने के कारण किस तरह नरेंद्र मोदी सरकार के एजेंडे वाले फैसले जस्टिस बेला त्रिवेदी को दिए गए।ध्यान दीजिए कि जस्टिस बेला त्रिवेदी नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते उनकी विधी सचिव थीं और उनके मातहत काम कर चुकी हैं।एक अच्छी बात यह रही कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे की तरह उनकी सार्वजनिक रूप से पैंट नहीं उतरी।इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।

अलविदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी।

 

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