रायपुर (ब्लैकआउट न्यूज़) Reference: Nankiram Kanwar case छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार के सुशासन पर प्रशासनिक चूक ने ठेंगा दिखा दिया है। भारतीय जनता पार्टी के सबसे सीनियर नेता ननकी राम कंवर की शिकायत की जांच प्रक्रिया अब सवालों के घेरे में है। इस घटना ने प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र और बिलासपुर संभाग के कमिश्नर की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
दरअसल, ननकी राम कंवर ने कोरबा कलेक्टर के खिलाफ जो शिकायत की थी, उसकी जांच सरकार ने बिलासपुर संभाग के कमिश्नर को सौंपी थी। लेकिन बिलासपुर संभाग के कमिश्नर की कार्यशैली ने सिस्टम और कानून पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
कमिश्नर की कार्रवाई पर उठे गंभीर सवाल Reference: Nankiram Kanwar case

शिकायत की गंभीरता को देखते हुए, राज्य सरकार ने जांच का महत्वपूर्ण दायित्व बिलासपुर कमिश्नर को सौंपा था। यह अपेक्षा थी कि वरिष्ठता और पद की गरिमा के अनुरूप कमिश्नर स्वयं इस संवेदनशील मामले की जांच करेंगे।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कमिश्नर ने सरकारी आदेशों को ताक पर रखते हुए, स्वयं जांच करने के बजाए यह महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी अपने अधीनस्थ दो उपायुक्तों (डिप्टी कमिश्नरों) और एक लेखाधिकारी को सौंप दी। प्रशासनिक हलकों में इसे घोर अनुशासनहीनता और शासकीय आदेशों की जानबूझकर अवहेलना माना जा रहा है।
नियमों का सीधा उल्लंघन Reference: Nankiram Kanwar case

यह कार्रवाई प्रशासनिक नियमों का सीधा उल्लंघन है, जो मामले की गंभीरता को और बढ़ा देता है।
स्पष्ट नियम: प्रशासनिक विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी भी आईएएस अधिकारी (इस मामले में कोरबा कलेक्टर) की जांच उनके जूनियर अधिकारी नहीं कर सकते। यह (पदानुक्रम) और प्रशासनिक मर्यादा के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत है।1976 के दिशा-निर्देशों की उपेक्षा: इतना ही नहीं, तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में यह स्पष्ट प्रावधान है कि नियुक्त जांच अधिकारी (यानी कमिश्नर) अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जांच किसी अन्य अधिकारी को हस्तांतरित नहीं कर सकते।
बिलासपुर कमिश्नर ने न सिर्फ प्रशासनिक नियमों की अवहेलना की है, बल्कि राज्य सरकार के मूल आदेश की अवमानना भी की है।
सुशासन को अफसरों का ठेंगा Reference: Nankiram Kanwar case

ऐसे मामले प्रदेश में साय सरकार के सुशासन मॉडल पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। प्रशासनिक विशेषज्ञों की मानें तो यदि वरिष्ठ अधिकारी ही सरकारी आदेशों और स्थापित नियमों की इस प्रकार खुलेआम अनदेखी करेंगे, तो इसके दूरगामी और नकारात्मक परिणाम होंगे। शासन व्यवस्था पर जनता का भरोसा कमजोर होगा। प्रशासन में अनुशासनहीनता की प्रवृत्ति बढ़ेगी। और जूनियर अधिकारियों द्वारा वरिष्ठों के आदेश को ठुकराने का चलन बढ़ेगा, जिससे प्रशासनिक पदानुक्रम ध्वस्त हो जाएगा।
प्रदेश में अफसरशाही हावी Reference: Nankiram Kanwar case
यह मामला तो स्पष्ट है कि प्रदेश में किस तरह अफसर अपनी बपौती चला रहे हैं। मामला इससे भी ज़्यादा चिंताजनक है कि प्रदेश में अफसरशाही का आलम यह हो गया है कि आम जनता तो दूर, सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता भी अधिकारियों की मनमानी और लालफीताशाही से त्रस्त हैं। सरकारी निर्देशों और प्रशासनिक नियमों की इस प्रकार खुलेआम अनदेखी करने से सुशासन की नींव कमजोर हो रही है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ही आखिरी उम्मीद
अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री विष्णु देव साय पर टिकी हैं। देखना होगा कि वह प्रशासनिक चूक और अनुशासनहीनता के मामले में क्या कदम उठाते हैं, जिससे छत्तीसगढ़ में सुशासन की नींव को हिलने से बचाया जा सके, प्रशासनिक मर्यादा एवं पारदर्शिता बहाल की जा सके।
क्या है मामला
दरअसल, वरिष्ठ आदिवासी नेता और प्रदेश के पूर्व गृह तथा वन मंत्री कंवर ने कोरबा कलेक्टर अजीत बंसत के खिलाफ 14 बिन्दुओं पर आरोप लगाए हैं। वो उन्हें हटाने की मांग पर अड़े हुए हैं। सीएम विष्णु देव साय ने कंवर के आरोपों की जांच कराने की बात कही थी और इस पर कमिश्नर सुनील जैन से जांच प्रतिवेदन मांगा है। जांच प्रतिवेदन के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।




