सुरेश चंद रोहरा की कलम से कोरबा/(ब्लैकआउट न्यूज़) Politics and Ram Rahim हरियाणा की राजनीति में जेल में बंद आरोपी और कैद की सजा भुगत रहे कथित ‘बाबा’ राम रहीम के सामने एक बार फिर राजनीति ने हाथ जोड़ लिया है. और सर झुका कर बार-बार साष्टांग करते दिखाई दे रही है. यह तो एक उदाहरण मात्र है- हमारे देश में धार्मिक पाखंड के आगे नेता सत्ता पाने के लिए लंबे समय से साष्टांग करते रहे हैं.
Politics and Ram Rahim
दरअसल, इसका कारण हरियाणा के नौ जिलों के करीब तीस सीटों पर लाखों की संख्या में उनके ‘भगत’ हैं. इन्हीं की वोट की ताकत के आगे बाबा विभिन्न चुनावों में उलटफेर की कोशिश करते रहे हैं इसमें कभी पास हो जाते हैं और कभी फेल…! जेल जाने के बाद उनके जादू में कमी जरूर आई है, लेकिन बाहर आते ही भक्त और नेता चरण वंदना शुरू कर देते हैं. मतदान से पहले राम रहीम का फिर पैरोल पर सशर्त बाहर आना यह बताता है कि नेताओं का अस्तित्व किस तरह कमजोर होता जा रहा है लोगों का भरोसा उठ चुका है और उन्हें ऐसे अपराधियों की आवश्यकता है जो उन्हें कुर्सी तक पहुंचाएं .
Politics and Ram Rahim
यह चर्चा छिड़ गई है कि बाबा राम रहीम इस बार कितना चुनाव में कितना असर डालेंगे. आइए आपको बताते हैं पैरोल पर रिहाई के बाद राम रहीम की क्या स्थिति है. राम रहीम मुस्कुराते हुए सुबह सुबह भारी सुरक्षा के बीच रोहतक की सुनारिया जेल से बाहर आ गए हैं . इधर चुनाव आयोग ने सशर्त उन्हें बीस दिनों की पेरोल दी है. निर्देश है – वे न तो हरियाणा में रहेंगे और न ही चुनाव प्रचार करेंगे. मगर इसके बावजूद नेताओं को उनकी आवश्यकता महसूस हो रही है ऐसा लग रहा है कि उनके भक्त उन्हें वोट देंगे.
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दरअसल, ऐसा अनेक बार हो चुका है. राम रहीम के नाम यह रिकॉर्ड है की जेल में रहते हुए बार-बार बाहर आते रहे हैं और उसका एक ही सबब है वह है सत्ता की मदद करना. अगर देखें तो पाएंगे अब तक कथित ‘बाबा’ राम रहीम करीब दो सौ पचहत्तर दिन पैरोल या फरलो पर बाहर रह चुका है. यह कैसा संयोग है कि वह प्रायः उन्हीं दिनों जेल से बाहर आता है, जब कहीं न कहीं चुनाव चल रहे होते हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि देश की उच्चतम न्यायालय को इस पर स्वयं संज्ञान लेकर इसकी जांच करानी चाहिए और नरेंद्र मोदी की सीबीआई को भी इसे संज्ञान में लेना चाहिए.
याद रहे करीब महीना भर पहले ही पैरोल पर रह कर राम रहीम जेल गया था.> पूछा जा रहा है कि एक तरफ संगीन मामलों में सजायाफ्ता कैदी को पैरोल मिल जाता है, वहीं बहुत सारे आरोपियों को जमानत तक नहीं मिल पाती.बहुत सारे कैदियों को नितांत आकस्मिक स्थितियों में भी पैरोल नहीं मिलती है.
वस्तुत : नेताओं को यह जानकारी है कि राम रहीम का हरियाणा के कुछ जिलों में खासा प्रभाव है. इस लिए अनुयायियों को राजनीतिक संदेश देने उसे बाहर लाया आता है. बता दें कि इससे पहले वह हरियाणा नगर निकाय चुनाव के समय तीस दिन की पैरोल पर बाहर आया था. आदमपुर विधानसभा उपचुनाव से पहले उसे चालीस दिन की पैरोल मिली थी. हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले भी उसे पैरोल मिली थी. राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले उसे उनतीस दिन की फरलो दी गई थी. कुल मिलाकर जब तक देश के सबसे बड़ी अदालत का डंडा नहीं चलेगा यह प्रहसन जारी रहेगा.
हरियाणा में लगभग बीस फीसद दलित मतदाता हैं. इसे अपने पक्ष में लेने के लिए बाबा जैसे अपराधी को भी जेल से बाहर लाकर के नेताओं ने दिखा दिया है कि वे सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार है.
कहते हैं ना की दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है, हरियाणा में भी राजनीति और नेता यही कर रहे हैं, राम रहीम हर बार कोशिश करते हैं कि उनका प्रभाव दिखे, वर्ष 2019 के में चुनाव में सिरसा (डेरा सच्चा सौदा मुख्यालय) में भी भाजपा जीत नहीं पाई. इसी तरह 2012 में कैप्टन अमरिंदर की डूबती नैय्या भी बाबा नहीं बचा पाए थे. जबकि बाबा का आशीर्वाद लेने कैप्टन सपत्नीक सिरसा ना पहुंचे थे. इतना ही नहीं डबवाली सीट पर डेरा सच्चा सौदा ने खुलकर इनेलो का विरोध किया था, पर इनेलो प्रत्याशी जीत गए. 2009 में अजय चौटाला भी डेरा के विरोध के बावजूद इस सीट से जीत गए थे.
कुल मिलाकर राम रहीम का जादू कभी चलता है कभी नहीं चलता मगर नेता उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके अपराधी चेहरे को भूल जाते हैं और यह बताते हैं कि उनका जनता से सरोकार हो या फिर नहीं हो, वे राम बाबा को सर पर बैठने के लिए तैयार है.