कोरबा/(ब्लैकआउट न्यूज़) DDM road land scam समूचे छत्तीसगढ़ में कोरबा जिला भूमि घोटाले के नाम पर अलग रिकार्ड बना चूका है आज भी राजस्व अमले की मिली भगत से भूमि घोटाला बदस्तूर जारी है ऐसा ही दो मामले में SDM कोर्ट ने माना की सरकारी जमीन और आदिवासी की जमीन को राजस्व रिकार्ड मे कुटरचना कर सामान्य व्यक्ति को बेचने का अपराध कारित हुआ है माननीय न्यायालय ने उन सभी रजिस्ट्री को शून्य करते हुए राजस्व रिकार्ड दुरुस्त करने का आदेश दिया है.
DDM road land scam
मामले में जो जानकारी मिली है SDM कोरबा ने शिकायत के आधार पर एक जाँच टीम गठित का मामले की जाँच कराई गयी जिसमे तहसीलदार कोरबा, नायब तहसीलदार कोरबा, राजस्व निरीक्षक एवं हल्का पटवारी, की टीम गठित किया गया। संयुक्त जॉच टीम से जॉच प्रतिवेदन प्राप्त हुआ है जो इस प्रकार है:-
DDM road land scam
” (1) खसरा नम्बर 302 का बंटाकन ख.नं. 302/21/घ/1 रकबा 0.008 हे. एवं खसरा नम्बर 302/21/घ/2 रकबा 0.040 हे. मेन्युवल खसरा पंचसाला वर्ष 2004-05 से वर्ष 2008-09 में दर्ज है। जिसका खसरा पंचसाला वर्ष 2009-10 से वर्ष 2012-13 में पांच बंटाकन होकर खसरा नम्बर 302/21/घ/1 रकबा 0.008 हे. ख0नं0-302/21/घ/2 रकबा 0.040 हे. खसरा नम्बर 302/21/घ/3 रकबा 0.028 हे. ख0नं0-302/21/घ/4 रकबा 0.073 हे. ख0नं0-302/21/ड रकबा 0.032 हे० कुल रकबा 0.181 हे0 है।
कुटरचना कर राजस्व रिकार्ड में रकबा बढ़ाया गया जो की वर्ष 2004-05 से वर्ष 2008-09 में दर्ज रकबा से 0.133 हे. अधिक दर्ज हो गया है। वर्तमान कम्प्यूटर ऑनलाईन अभिलेख में खसरा नम्बर 302/21/घ/1 रकबा 0.004 हे०, ख0नं0- 302/21/घ/2 रकबा 0.040 हे०, ख0नं0-302/घ/3 रकबा 0.028 हे०, ख0नं0- 302/21/ड रकबा 0.032 हे0 कुल रकबा 0.108 हे० दर्ज है। तक खसरा नम्बर (302/21/घ/4 कम्प्युटर ऑनलाईन अभिलेख में दर्ज नहीं है।) ख0नं0- 302/21/घ से 302/21/घ/3, 302/21/घ/3, 302/21/घ/4, 302/21/घ/3, 302/21/ड. बिना किसी आदेश के दर्ज हुआ है, जो कि कुटरचना पूर्ण निर्मित किया जाना प्रतीत हो रहा है एवं विधि-विरूद्ध है।
(2) खसरा नम्बर 348 का बटांकन 348/4 रकबा 0.093 हे० भूमि भू-स्वामी छ०ग० विद्युत मण्डल के नाम पर होना पाया गया.
DDM road land scam
इस सारे खेल में दयाल चंद विधवानी का खेला है।बता दे की कुख्यात जमीन दलाल, दयाल विधवानी ने DDM रोड की बेशकीमती जमीनों में राजस्व अधिकारीयों से मिलीभगत कर लम्बा खेला किया है लेकिन सभी मामलों में आला अधिकारी अपने अधीनस्थ पटवारी एवं राजस्व निरिक्षकों को बचाते रहे है, यही वजह है की पटवारी एवं राजस्व निरिक्षकों के हौसले बुलंद है जबकी सच्चाई ये है की राजस्व रिकार्ड से ही सारा खेला होता है जिसमे लाखों रुपयों के अंदर बाहर का खेल चलता है लेकिन पकडे जाने पर अनजान क्रेता को भारी आर्थिक और मानसिक नुकसान उठाना पड़ता है और विक्रेता एवं पटवारी जो मुख्य सूत्रधार होता है वह बचकर निकल जाता है…
आदिवासी की जमीन सामान्य होकर बिक गई पटवारी ने कहा हमें नहीं मालूम और दोष मुक्त हो गए
बड़े ही आसानी से अशोक मित्तल द्वारा आदिवासी की जमीन का नक्शा ही बदल दिया गया और किसी अन्य की भूमि को अपना बताकर पूर्व में जो जमीन नगर निगम द्वारा रोड में अर्जन की जा चुकी है उसका पूर्व में डायवर्सन कराया जाता है फिर फर्जी विक्रय करते समय अशोक मित्तल द्वारा एक झूठा शपथ पत्र दिया जाता है की जमीन परिवर्तित नहीं है। जो जमीन का खसरा 670/1 11 डिसमिल पूर्व में ही रोड एवं मंदिर में जा चुकी है उसका डायवर्सन किस प्रकार हो जाता है यह समझ से परे है। पटवारी बोले हमें नहीं मालूम ये कैसे हुआ।
कैसी विडम्बना है की SDM द्वारा जारी आदेश में साफ लिखा है की खसरा नंबर 670/1 रकबा 0.11 ए. में से 0.8 ए. भूमि में नगर निगम की सडक बनाई गयी है और 0.3 ए. जमीन में ईश्वर चंद का के कब्जे में है ,उसी जमीन का राजस्व अभिलेखों में राजस्व अधिकारियो की मिलीभगत से रिकार्ड दुरुस्त करवाकर सरकारी जमीन को पुनः बेच दिया गया एवं दूसरे के हक़ अधिकार की भूमि में बालात कब्ज़ा कर लिया गया. इस खेल में कोरबा के कथित धन्ना सेठ सफ़ेद पोश अशोक मित्तल, कुख्यात जमीन दलाल दयाल विधवानी तत्कालीन पटवारी से मिलीभगत कर रजिस्ट्री करा दी गयी जिसे पूर्व में सबसे पहले अशोक मित्तल के नाम अनुबंध कराया गया अशोक मित्तल को पूर्व से ही यह सारी जानकारी थी कि उक्त खसरा नगर निगम की रोड में अर्जन किया जा चुका है।
अशोक मित्तल द्वारा पुनः इस जमीन को मोटी रकम की लालसा में फर्जी एवं कूट रचित दस्तावेज के सहारे अन्य व्यक्ति को विक्रय कर अन्य व्यक्ति की जमीन में कब्जा दिलाकर लाखो रूपये डकार लिए जाते हैं.
अब देखना यह होगा की राजस्व अमले की जाँच रिपोर्ट और SDM न्यायालय के आदेश के बाद अशोक मित्तल, दयाल चंद विधवानी, निरंजन साहू सहित पटवारी एवं राजस्व निरीक्षक के खिलाफ कार्यवाही होती है या वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती है उसी पुराने ढार्रे में बचने बचाने का काम होता रहेगा.
अगले एपिशोड में पढ़िए कैसे आदिवासी की भूमि राजस्व अभिलेखों में सामान्य बन जाती है और उसकी रजिस्ट्री कर प्रमानिकारण भी हो जाता है.